प्रशांत किशोर की तीखी आलोचना और सवालों की बौछार
राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने हाल ही में बिहार में कांग्रेस पार्टी की स्थिति पर कड़े सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा है कि कांग्रेस का राज्य में कोई 'क्रेडिबल वजूद' नहीं है। इसकी वजह से राहुल गांधी की कई रैलियों के बावजूद बिहार के गाँवों में कांग्रेस के झंडे, कार्यकर्ता या कार्यक्रम कहीं दिखाइ नहीं देते। किशोर ने यह भी दावा किया कि वे पिछले 17 महीनों से पदयात्रा कर रहे हैं और इस दौरान उन्होंने कहीं भी कांग्रेस का कोई निशान नहीं देखा।
राहुल गांधी की रैलियाँ और गठबंधन की तैयारी
प्रशांत किशोर की यह आलोचना तब आई जब राहुल गांधी ने राजद नेता तेजस्वी यादव के साथ कई रैलियाँ की थीं। ये रैलियाँ कांग्रेस, राजद और अन्य पाँच पार्टियों के गठबंधन के हिस्से के रूप में आयोजित की गई थीं। इस गठबंधन के तहत कांग्रेस नौ सीटों, जबकि राजद 23 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। जबकि राहुल गांधी ने अपनी रैलियों में आत्मविश्वास दर्शाते हुए कहा कि उनका गठबंधन बिहार की सभी 40 लोकसभा सीटें जीतेगा, किशोर की टिप्पणियाँ कांग्रेस के लिए मुश्किलें बढ़ा सकती हैं।
किशोर का कांग्रेस से जवाब माँगना
प्रशांत किशोर ने कांग्रेस से बिहार में उनकी योजनाओं और तैयारियों के बारे में स्पष्टता की माँग की है। उनका कहना है कि सिर्फ रैलियाँ आयोजित करने से काम नहीं चलेगा, कांग्रेस को अपने संगठनात्मक ढाँचे और जमीनी कार्यक्रमों पर भी ध्यान देना होगा। किशोर की यह आलोचना कांग्रेस की राज्य इकाई की कमजोरियों को उजागर करती है और इसके लिए पार्टी को तत्काल उपाय करने की जरूरत बताई है।
गांधी के इस विश्वास के पीछे के कारण
हालांकि, राहुल गांधी का आत्मविश्वास इस बात पर आधारित है कि विपक्षी गठबंधन, जो अब INDIA के नाम से जाना जाता है, देश भर में खासा समर्थन प्राप्त कर रहा है। राहुल गांधी ने अपनी रैलियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'परमात्मा' टिप्पणी का भी उल्लेख किया और कहा कि मोदी इसे अपने क्रियाकलापों जैसे अदानी विवाद से बचने के लिए उपयोग करेंगे। गांधी के अनुसार यह टिप्पणी मोदी के राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है जिससे वे अपनी जिम्मेदारियों से बचने की कोशिश करते हैं।
विश्लेषकों का विचार
चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि प्रशांत किशोर की यह टिप्पणी कांग्रेस के लिए चेतावनी की तरह है। अगर कांग्रेस बिहार में अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहती है तो उसे जमीन पर संगठनात्मक ढाँचा और चुनावी रणनीति में बदलाव लाना होगा। किशोर का यह दावा कि पिछले 17 महीनों में उन्हें कहीं भी कांग्रेस के बारे में कुछ नहीं दिखा, कांग्रेस की व्यवहारिक चुनौती को दर्शाता है।
समाप्ति
बिहार में कांग्रेस पार्टी की चुनावी तैयारियों को लेकर प्रशांत किशोर की यह आलोचना कांग्रेस पार्टी के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है। कांग्रेस को अपने संगठनात्मक और जमीनी स्तर पर जोर देते हुए, रणनीतिक बदलाव करने होंगे ताकि वे आगामी चुनावों में एक मजबूत दावा पेश कर सकें। राहुल गांधी के आत्मविश्वास के बावजूद, कांग्रेस को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनकी उपस्थिति राज्य के हर कोने में महसूस की जा सके।
Kamlesh Dhakad
ये बात सच है, बिहार में कांग्रेस का कोई जमीनी ढांचा नहीं बचा। रैलियाँ तो चलती हैं, पर गाँव के कोने में कोई कार्यकर्ता नहीं।
Partha Roy
कांग्रेस के पास तो अब सिर्फ राहुल गांधी की आवाज़ है... बाकी सब धुंधला हो चुका है। अगर ये गठबंधन भी टूट गया तो क्या बचेगा? 😅
ADI Homes
मैं तो सोचता हूँ कि शायद कांग्रेस अब बिहार में जमीनी स्तर पर नहीं चल रही... बस टीवी पर दिखाई देती है।
Hemant Kumar
प्रशांत किशोर की बात में कुछ सच है। लेकिन कांग्रेस को अपने बुजुर्ग कार्यकर्ताओं को भी वापस लाना होगा। वो लोग अभी भी गाँवों में लोकप्रिय हैं।
NEEL Saraf
मैंने अपने गाँव में देखा है... कांग्रेस के झंडे तो अब बंदरगाह पर लटके हैं, न कि गाँव के मुख्य चौराहे पर... ये बहुत दुखद है।
Ashwin Agrawal
गठबंधन तो बन गया, लेकिन उसके अंदर कांग्रेस का कोई असली हिस्सा नहीं। बस नाम लिख दिया गया।
Shubham Yerpude
यह सब एक गहरा षड्यंत्र है... जिसका लक्ष्य है भारत के राष्ट्रीय चेतना को तोड़ना। कांग्रेस के अंदर वही लोग हैं जो 1947 में देश को बांटने के लिए तैयार थे।
Hardeep Kaur
मैंने 2019 में बिहार के एक गाँव में कांग्रेस के कार्यकर्ता से बात की थी... वो कह रहे थे कि अब कोई भी उन्हें बुलाता नहीं। बस चुनाव से पहले आते हैं।
Chirag Desai
राहुल गांधी की रैलियाँ तो दिखती हैं, पर कांग्रेस के कार्यकर्ता नहीं। बस बस्ती में गाड़ी खड़ी करके चले जाते हैं।
Abhi Patil
इस अवस्था का सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषण करने के लिए हमें पोस्ट-कॉलोनियल राष्ट्रीय अस्तित्व के दर्शनशास्त्र के संदर्भ में बात करनी होगी, जिसमें गांधीवादी आधार के अवशेष अब सिर्फ संस्मरण बन चुके हैं।
Devi Rahmawati
क्या कांग्रेस के पास बिहार में अब कोई युवा नेता नहीं बचा? ये सिर्फ एक राजनीतिक खालीपन है।
Prerna Darda
ये एक गहरी संस्थागत विफलता है। कांग्रेस ने लोकतंत्र के अंतर्गत सामाजिक संगठन के सिद्धांतों को नजरअंदाज कर दिया है। अब वो बस एक चुनावी टूल है, न कि एक विचारधारा।
rohit majji
मैंने अपने बाप को देखा है, वो कांग्रेस के झंडे के नीचे खड़े होते थे... अब वो कहते हैं, 'बेटा, अब तो बस नहीं चलेगा।'
Uday Teki
बस राहुल गांधी आएं और फिर चले गए... बाकी कुछ नहीं रहा 😢
Haizam Shah
अगर कांग्रेस ने अपनी जमीनी टीम को नहीं बचाया, तो अब वो बस एक नाम है। अगर ये गठबंधन जीत गया तो भी कांग्रेस का कुछ नहीं होगा। ये खेल खत्म हो चुका है।