तमिलनाडु कांग्रेस के पूर्व प्रमुख ई. वी. के. एस. एलंगोवन का निधन: 75 वर्ष की उम्र में दिवंगत
ई. वी. के. एस. एलंगोवन: एक समर्पित राजनीतिज्ञ का निधन
तमिलनाडु के प्रतिष्ठित कांग्रेस नेता और पूर्व तमिलनाडु कांग्रेस कमेटी (टीएनसीसी) अध्यक्ष ई. वी. के. एस. एलंगोवन का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनका जन्म 21 दिसंबर 1948 को इरोड जिले में हुआ था। उनके निधन के साथ ही भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण अध्याय का अंत हो गया। उनके राजनीति में प्रवेश और योगदान के किस्से न केवल तमिलनाडु में बल्कि पूरे भारतवर्ष में विख्यात हैं।
ई. वी. के. एस. एलंगोवन का सत्तारूढ़ दल कांग्रेस में गहरा प्रभाव रहा था। वह भारतीय राजनीति के दिग्गज नेता ई. वी. के. सम्पत के पुत्र और प्रसिद्ध समाज सुधारक पेरियार ई. वी. आर. रामासामी के भाई कृष्णासामी के पोते थे। इससे उनके राजनीतिक भविष्य की नींव बचपन से ही मजबूत हुई थी। राजनीति में उनकी गहरी रूचि और उनके समर्पण का ही परिणाम था कि वे कांग्रेस पार्टी में इतना बड़ा मुकाम हासिल कर पाए।
उनका राजनीतिक सफर और उपलब्धियाँ
ई. वी. के. एस. एलंगोवन ने राजनीति में अपने करियर की शुरुआत 40 साल पहले की थी। उन्होंने तमिलनाडु विधानसभा में इरोड ईस्ट विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। इसके अलावा, वे केंद्र सरकार में 2004 से 2009 तक प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कपड़ा मंत्री के पद पर भी विराजमान रहे। उनका योगदान कपड़ा उद्योग में कई सकारात्मक बदलावों का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
वर्ष 1984 में उन्होंने सत्यामंगलम विधानसभा क्षेत्र से विधायक के रूप में अपनी पहचान बनाई और कई महत्वपूर्ण सरकारी नीति निर्माण प्रक्रियाओं में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। इसके अलावा, 2023 के उपचुनावों में, जिन्होंने उनके पुत्र तिरुमगन एवेरा की मौत के बाद खाली हुई सीट पर जीत हासिल की थी, उन्होंने इरोड ईस्ट विधानसभा सीट भी अपने नाम की थी। यह उनके राजनीतिक कैरियर का एक और गौरवशाली अध्याय था।
एलंगोवन की विरासत और प्रभाव
ई. वी. के. एस. एलंगोवन का करियर डॉ.विडियन और कांग्रेस के आदर्शों से गहराई से प्रेरित था। उनके योगदान ने तमिलनाडु और राष्ट्रीय राजनीति के कई महत्वपूर्ण पहलुओं को और मजबूती दी। उनका निधन सिर्फ कांग्रेस के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश की राजनीतिक भूमि के लिए एक अपूर्णीय क्षति है।
उनके जीवन और कार्यों से अनेक उभरते राजनीतिज्ञों ने प्रेरणा ली और उनके पदचिन्हों पर चलने का संकल्प लिया। अब जब वे हमारे बीच नहीं रहे, उनकी यादें और उनका योगदान सदैव हमारे साथ रहेगा। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में उनकी कमी को पूरा करना कठिन होगा, लेकिन उनके द्वारा स्थापित किए गए आदर्शों को आगे बढ़ाना हमारी जिम्मेदारी है।
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