अमेरिकी फेडरल रिजर्व का निर्णय: ब्याज दरें स्थिर, सितंबर में संभावित कटौती
जुलाई की नीति बैठक में अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने प्रमुख ब्याज दर को 5.25% से 5.5% के बीच बनाए रखा। इस निर्णय ने उन बाजार सहभागियों की अपेक्षाओं को पूरा किया जो दरों में स्थिरता की उम्मीद कर रहे थे। फेड चेयर जेरोम पॉवेल ने बैठक के बाद की प्रेस कॉन्फ्रेंस में संकेत दिया कि अगर मुद्रास्फीति में और गिरावट आती है और श्रम बाजार में कमजोरी के संकेत मिलते हैं, तो दर कटौती सितंबर में संभव हो सकती है।
नास्डैक में उछाल और बाजार की प्रतिक्रिया
फेड के इस निर्णय के बाद शेयर बाजार में उत्साह देखा गया। नैस्डैक कंपोजिट इंडेक्स में 2.6% की वृद्धि दर्ज की गई, जो निवेशकों की उम्मीदों को दर्शाता है। फेड चेयर पॉवेल की टिप्पणियों ने एक आशावादी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, जिससे संभावित दर कटौती की संभावना बढ़ गई।
मुद्रास्फीति की स्थिति और आर्थिक दृष्टिकोण
फेडरल रिजर्व मुद्रास्फीति की स्थिति पर कड़ी नजर रखे हुए है, जिसने 2022 में चार दशक के उच्चतम स्तर को छू लिया था। हालांकि, हाल के महीनों में मुद्रास्फीति में महत्वपूर्ण गिरावट आई है। फेड गवर्नर क्रिस्टोफर वालर ने बताया कि केंद्रीय बैंक उस समय के करीब पहुंच रहा है जब नीति दर में कटौती की जरूरत होगी।
श्रम बाजार और फेडरल रिजर्व का दृष्टिकोण
शिकागो फेड के अध्यक्ष ऑस्टन गुल्सबी ने भी कम मुद्रास्फीति स्तरों पर वर्तमान ब्याज दरों के प्रभाव को उजागर किया। अमेरिकी अर्थव्यवस्था एक 'सॉफ्ट लैंडिंग' पर जा रही है, जहां मुद्रास्फीति फेड के 2% लक्ष्य पर धीमी हो रही है बिना मंदी के। फेड की अगली बैठक सितंबर में निर्धारित है, जहां आगामी आर्थिक आंकड़ों के आधार पर आगे की दर समायोजन पर विचार किया जाएगा।
आर्थिक संकेतक और संभावनाएं
फेड की नीति का मुख्य लक्ष्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करके आर्थिक स्थिरता बनाए रखना है। हालांकि, श्रम बाजार की स्थिति भी महत्वपूर्ण है। अगर नौकरी की वृद्धि दर धीमी पड़ती है और बेरोजगारी दर बढ़ती है, तो फेड के पास दर कटौती का मौका हो सकता है। फेड की सितंबर की बैठक में सभी नजरें आने वाले आर्थिक आंकड़ों पर होंगी, जहां दरों में संभावित कटौती का निर्णय लिया जाएगा।
sarika bhardwaj
ये फेड का फैसला तो बिल्कुल सही है! 🤩 अगर ब्याज दरें घटाई गईं तो इन्फ्लेशन फिर से उछल जाएगा। हमें स्थिरता चाहिए, न कि अस्थिरता। 💪📈 #EconomicWisdom
Dr Vijay Raghavan
अमेरिका की ये नीति हमारे लिए भी बहुत खतरनाक है। हमारी आर्थिक स्वावलंबन की राह इन निर्णयों से बाधित हो रही है। हमें अपने रास्ते पर चलना चाहिए, न कि विदेशी बैंकों के आदेशों का पालन। 🇮🇳🔥
Partha Roy
yeh sab fake news hai... fed ke log khud hi inflation ko control nahi kar pa rahe... phir bhi kaise kah rahe hain ki september mein cut hogi? sab kuch manipulated hai... aur hum log soch rahe hain ki kya hoga? 😒
Kamlesh Dhakad
thik hai, thoda wait karte hain. agar inflation thik ho raha hai aur job market slow ho raha hai, toh cut ka matlab hai ki economy healthy hai. bas thoda patience chahiye 😊
ADI Homes
bhai log, yeh sab kuch thoda complex hai... main toh bas dekhta hoon ki market kya kar raha hai... abhi toh nasdaq up hai, iska matlab kuch toh sahi ho raha hai na? 😌
Hemant Kumar
fed ka approach bilkul sahi hai. inflation control ke liye patience zaroori hai. agar hum jaldi cut karte hain toh phir se inflation ka cycle shuru ho jayega. humein long-term dekhna chahiye.
NEEL Saraf
I mean... ये सब तो बहुत अच्छा है... लेकिन क्या हमारे यहाँ के छोटे व्यापारी? उनके लिए ये ब्याज दरें क्या कर रही हैं? क्या हम इसे इतना साधारण समझ रहे हैं? 🤔
Ashwin Agrawal
सितंबर की बैठक का इंतजार कर रहा हूँ। अगर CPI और U3 दोनों अच्छे आंकड़े देते हैं, तो कटौती तो होनी ही चाहिए। बस थोड़ा धैर्य रखें।
Shubham Yerpude
क्या आपने कभी सोचा है कि ये सब एक ग्लोबल सिस्टम का हिस्सा है? फेड, बैंक ऑफ इंग्लैंड, यूरोपीय सेंट्रल बैंक... सब एक दूसरे के लिए नियंत्रक हैं। हम सिर्फ एक छोटी सी बुलबुला हैं। इस दुनिया में आपकी आज़ादी कहाँ है?
Hardeep Kaur
हां, लेकिन याद रखें कि श्रम बाजार का संकेत भी बहुत महत्वपूर्ण है। अगर बेरोजगारी बढ़ने लगी तो कटौती करना जरूरी हो जाएगा। फेड बहुत सावधान है, ये अच्छी बात है।
Chirag Desai
cut ho jaye toh achha hai, nahi toh bhi chalega. bas inflation control mein dhyan rakhna hai.
Abhi Patil
The entire macroeconomic architecture of the modern world is predicated on a fragile illusion of stability, wherein central banks, through their opaque decision-making processes, manipulate the very perception of value. The Fed’s current stance is not a policy-it is a performance art, designed to pacify the masses while the structural inequalities deepen beneath the surface. One must question: Is this ‘soft landing’ merely a euphemism for a controlled descent into stagnation?
sarika bhardwaj
अरे वाह! इतना लंबा लेकिन सही बात कही! जो लोग अभी तक समझ नहीं पाए, वो इसे दोबारा पढ़ें। 🙌❤️