कुवैत में भयानक आग: केरल के 26 लोगों की मौत, सात गंभीर रूप से घायल

जून 13 Roy Iryan 20 टिप्पणि

कुवैत में हाल ही में एक छह मंजिला आवासीय इमारत में लगी भीषण आग ने 49 मजदूरों की जान ले ली। इस त्रासदी में मारे गए लोगों में से 26 केरल से थे। मृतकों की पहचान और उनके परिवारों को सूचित किये जाने का काम तेजी से चल रहा है। इनमें से 15 मृतकों की पहचान हो चुकी है, जिनमें एर्नाकुलम के डेनी राफेल, कोल्लम के वाय्यंकरा के शमीर और पंडलम, पथानामथित्ता के आकाश शामिल हैं।

एर्नाकुलम के डेनी राफेल और कोल्लम के लुकोस और साजन जॉर्ज भी इसी त्रासदी के शिकार हुए हैं। साजन जॉर्ज, जो एक प्रशिक्षु मेकेनिकल इंजीनियर थे, महज 17 दिन पहले ही कुवैत गए थे। वहीं, लुकोस पिछले 18 साल से कुवैत में काम कर रहे थे। शोक की इस घड़ी में इन परिवारों को धैर्य बंधाना बेहद कठिन हो रहा है। अश्रुपूरित आंखों के बावजूद, ये परिवार अब अपने प्रियजनों के पार्थिव शरीर को भारत लाने के लिए कुवैत की अधिकारियों के साथ काम कर रहे हैं।

पीड़ित परिवारों के लिए सहायता

इस दुर्घटना में घायल होने वाले सात केरलवासियों का इलाज कुवैत के विभिन्न अस्पतालों में चल रहा है। इन गंभीर रूप से घायल लोगों की स्थिति को देखते हुए केरल की राज्य सरकार ने त्वरित कदम उठाए हैं। केरल की सरकार ने घोषणा की है कि इस ह्रदय-विदारक घटना में मारे गए लोगों के परिवारों को पांच लाख रुपये का मुआवजा दिया जाएगा जबकि घायलों के परिवारों को एक लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी जाएगी।

केरल के प्रसिद्ध व्यवसायी, यूसुफ अली और रवि पिल्लई ने भी पीड़ितों के परिवारों की सहायता के लिए आर्थिक मदद की घोषणा की है। यूसुफ अली ने बताया कि पीड़ित परिवारों को हर संभव मदद की जाएगी ताकि वे इस कठिन समय से गुजर सकें।

तलाशी और राहत प्रयास

कुवैत में इस आगजनी की घटना के बाद रेस्क्यू ऑपरेशन तेजी से चलाया गया। दमकल कर्मियों ने बड़ी मेहनत से आग पर काबू पाया और प्रभावित लोगों को बचाने का प्रयास किया। एजेंसियों का कहना है कि आग लगने की वजह की जांच जारी है। आवासीय इमारत में रहने वाले मजदूरों के परिवारों ने भी अपने परिजनों की मदद के लिए प्रयास तेज कर दिए हैं।

कुलमिलाकर, यह त्रासदी ने अनगिनत परिवारों को असहनीय पीड़ा दी है। इस घटना ने न केवल केरल बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। ऐसे कठिन समय में, सरकार और समाज के सभी लोगों को मिलकर इन पीड़ितों और उनके परिवारों की मदद करने का संकल्प लेना चाहिए। केरल के ये लोग जो अपने परिवारों के बेहतर भविष्य के लिए विदेश गये थे, वे अब वापस नहीं लौटेंगे।

कम से कम उनकी यादें और उनके परिवारों के लिए सहायता के प्रयास उनके योगदान को सम्मानित कर सकते हैं। आखिरकार, इंसानियत की यही तो पहचान है कि हम एक दूसरे के दुख में साथ खड़े होते हैं और मदद का हाथ बढ़ाते हैं। अब यह समय है जब हम इन परिवारों के साथ खड़े हों और उन्हें यह यकीन दिलाएं कि वे अकेले नहीं हैं।

Roy Iryan

Roy Iryan (लेखक )

मैं एक अनुभवी पत्रकार हूं जो रोज़मर्रा के समाचारों पर लेखन करता हूं। मेरे लेख भारतीय दैनिक समाचारों पर गहन विश्लेषण प्रदान करते हैं। मैंने विभिन्न समाचार पत्र और ऑनलाइन प्लेटफार्म के लिए काम किया है। मेरा उद्देश्य पाठकों को सही और सटीक जानकारी प्रदान करना है।

VIKASH KUMAR

VIKASH KUMAR

ये तो बस एक आग नहीं है ये तो हमारी नींद का दरवाजा तोड़ रही है 😭

Vipin Nair

Vipin Nair

इन मजदूरों की मौत सिर्फ एक दुर्घटना नहीं, ये एक सिस्टम की विफलता है। कुवैत में भी नियम हैं, भारत में भी। लेकिन जब दोनों तरफ से लापरवाही हो तो ये त्रासदी होती है। अब बस मुआवजा नहीं, जांच और जवाबदेही चाहिए।

Rohan singh

Rohan singh

ये लोग अपने घरों के लिए जा रहे थे, न कि मरने के लिए। हमें उनकी याद में कुछ करना होगा।

Tarun Gurung

Tarun Gurung

मैंने तो सोचा था कि कुवैत में तो नियम हैं, लेकिन ये आग दिखा दिया कि नियम बस कागज पर हैं। इमारत में फायर अलार्म नहीं था? एवाकेशन प्लान? ये सब कहाँ गया? ये लोग तो बस एक बेहतर जीवन की तलाश में थे। अब उनकी यादों को सम्मान देने का समय है।

मैंने अपने दोस्त को भी कुवैत जाते देखा है। उसने कहा था - 'भाई, यहाँ काम करने वाले लोग तो जान लेकर जा रहे होते हैं।' मैंने तब हंस दिया था। अब वो बात दिल में चुभ रही है।

मुआवजा तो बहुत अच्छा है, लेकिन क्या ये एक जीवन की कीमत है? नहीं। ये तो एक शुरुआत है। अब इमारतों को नियमों के अनुसार बनाना होगा। भारत को अपने नागरिकों के लिए विदेश में भी लॉबी करनी होगी।

हम सब तो इन लोगों के बारे में बात कर रहे हैं, लेकिन क्या हमने कभी इनके बारे में सोचा है? क्या हमने कभी इनके घरों के बारे में सोचा है? जो बच्चे अब अपने पिता के बिना बड़े होंगे? उनकी शिक्षा? उनकी खुशी?

ये बस एक खबर नहीं, ये हमारी नैतिकता का परीक्षण है। जब तक हम इन लोगों को 'मजदूर' नहीं, बल्कि 'इंसान' कहेंगे, तब तक ये त्रासदियाँ दोहराएंगी।

मैं तो अपने दोस्तों को भी बोल रहा हूँ - अगर कोई तुम्हें विदेश जाने के लिए कहे, तो पहले उस देश की नीतियों को समझो। नौकरी नहीं, जिंदगी बेच रहे हो।

कुवैत की सरकार भी अपने नियम बदले। भारत की सरकार भी अपने नागरिकों के लिए एक विदेशी श्रमिक सुरक्षा ब्यूरो बनाए। ये बस एक आग नहीं, ये एक चेतावनी है।

Abhijit Padhye

Abhijit Padhye

अरे भाई, ये तो बस एक आग थी, लेकिन ये जो लोग यहाँ लिख रहे हैं उनका तो एक नाटक चल रहा है। क्या भारत में आग नहीं लगती? क्या हमारे यहाँ इमारतें सुरक्षित हैं? ये लोग तो बस भारत की नीचता को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं।

कुवैत के पास अपने नियम हैं। भारत के पास क्या है? बस चिल्लाने की आदत।

Ira Burjak

Ira Burjak

अरे वाह, अब तो सब ने अपना एक नाटक शुरू कर दिया। जब भी कुछ होता है तो लोग अपनी भावनाएँ निकालने लगते हैं। लेकिन असली मदद कहाँ है? क्या कोई इन घायलों के लिए रक्तदान कर रहा है? क्या कोई उनके बच्चों के लिए पढ़ाई का इंतजाम कर रहा है? नहीं। सब बस इमोजी डाल रहे हैं। 😔💔

nasser moafi

nasser moafi

कुवैत में भारतीयों की संख्या तो लाखों है। इनमें से कितने ने अपने घरों के लिए जोखिम उठाया? और अब जब एक आग लगी तो सब चिल्ला रहे हैं। लेकिन क्या ये आग अचानक लगी? नहीं। ये एक बार फिर दिखाती है कि हमारी समाज की नजरें बस बाहर देखती हैं, अपने अंदर नहीं।

मैंने अपने भाई को कुवैत भेजा था। उसने कहा - 'भाई, यहाँ तो हमें दो बार सोचना पड़ता है। एक बार काम के लिए, दूसरी बार जिंदगी के लिए।'

हम तो बस बाहर जाकर अपने देश की नीचता को दिखाने के लिए तैयार हैं। लेकिन अपने देश की नीचता को देखने के लिए तैयार नहीं।

UMESH ANAND

UMESH ANAND

इस घटना के संदर्भ में यह अत्यंत दुखद है कि भारतीय श्रमिकों की सुरक्षा के लिए कोई व्यवस्थित नीति नहीं है। यह एक राष्ट्रीय असफलता है। राज्य सरकारों को अंतरराष्ट्रीय श्रमिकों के लिए एक अलग विभाग बनाना चाहिए, जो न केवल आर्थिक सहायता प्रदान करे बल्कि नैतिक और विधिक समर्थन भी प्रदान करे।

यह आपातकालीन अनुदान तो बहुत अच्छा है, लेकिन यह एक बार की बात है। हमें एक टिकाऊ ढांचा चाहिए।

Haizam Shah

Haizam Shah

ये तो बस एक आग थी, लेकिन ये आग ने हमें बता दिया कि हम कितने निर्बल हैं। कुवैत की सरकार को भी जवाबदेह ठहराया जाए। भारत की सरकार को भी अपने नागरिकों के लिए एक नियम बनाना चाहिए।

मैंने अपने भाई को कुवैत भेजा था। अब वो नहीं लौटेगा। लेकिन मैं ये नहीं छोड़ूंगा कि ये त्रासदी दोहराई न जाए।

Karan Chadda

Karan Chadda

क्या भारत तो बस अपने नागरिकों को विदेश भेजने के लिए तैयार है, लेकिन उनकी सुरक्षा के लिए नहीं? 😒

हम तो बस दुख के लिए रो रहे हैं, लेकिन क्या हम उनके लिए कुछ कर रहे हैं? नहीं।

इन लोगों के बच्चे अब अकेले रह जाएंगे। उनकी यादें तो बचेंगी, लेकिन उनकी जिंदगी कौन बचाएगा?

मैं तो अब विदेश जाने वाले लोगों को बोलूंगा - अपनी जिंदगी बेचने की जगह, अपने देश में रहो।

हमारे यहाँ तो बस आंखें बंद करके चलते हैं।

Tejas Shreshth

Tejas Shreshth

ये सब तो बस एक राजनीतिक नाटक है। भारत की सरकार को तो बस इन लोगों के लिए एक लाख रुपये देना है। लेकिन क्या इन लोगों के लिए एक नियम बनाया गया है? नहीं। ये तो बस एक चिकित्सा है, न कि एक उपचार।

हमें ये समझना होगा कि विदेश में जाने वाले लोग बस एक आर्थिक उपकरण नहीं हैं। वो इंसान हैं।

Shardul Tiurwadkar

Shardul Tiurwadkar

ये आग ने हमें एक बात सिखा दी - जब तक हम अपने देश के लोगों को बाहर भेजते रहेंगे, तब तक ऐसी घटनाएँ होती रहेंगी।

मैंने अपने दोस्त को कुवैत भेजा था। उसने कहा - 'भाई, यहाँ तो हमें दो बार सोचना पड़ता है। एक बार काम के लिए, दूसरी बार जिंदगी के लिए।'

अब मैं उसकी बात समझ गया।

Shivani Sinha

Shivani Sinha

ये तो बस एक आग है ना? लेकिन ये जो लोग लिख रहे हैं उनका तो एक नाटक चल रहा है। क्या हमारे यहाँ आग नहीं लगती? क्या हमारे यहाँ इमारतें सुरक्षित हैं? नहीं।

हम तो बस अपने देश की नीचता को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं।

Saravanan Thirumoorthy

Saravanan Thirumoorthy

ये तो बस एक आग है। लेकिन ये जो लोग लिख रहे हैं उनका तो एक नाटक चल रहा है। क्या हमारे यहाँ आग नहीं लगती? क्या हमारे यहाँ इमारतें सुरक्षित हैं? नहीं।

हम तो बस अपने देश की नीचता को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं।

vamsi Pandala

vamsi Pandala

ये तो बस एक आग है। लेकिन ये जो लोग लिख रहे हैं उनका तो एक नाटक चल रहा है। क्या हमारे यहाँ आग नहीं लगती? क्या हमारे यहाँ इमारतें सुरक्षित हैं? नहीं।

हम तो बस अपने देश की नीचता को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं।

Dr Vijay Raghavan

Dr Vijay Raghavan

कुवैत के लोगों को जिम्मेदार ठहराया जाए। भारत की सरकार को भी अपने नागरिकों के लिए एक नीति बनानी चाहिए। ये बस एक आग नहीं, ये एक चेतावनी है।

sarika bhardwaj

sarika bhardwaj

इस तरह की घटनाओं में राज्य सरकारों को एक विशेष फंड बनाना चाहिए। ये एक आर्थिक सहायता नहीं, ये एक नैतिक जिम्मेदारी है।

हमें ये समझना होगा कि विदेश में जाने वाले लोग बस एक आर्थिक उपकरण नहीं हैं। वो इंसान हैं।

ये तो बस एक आग है। लेकिन ये जो लोग लिख रहे हैं उनका तो एक नाटक चल रहा है।

Rutuja Ghule

Rutuja Ghule

ये तो बस एक आग है। लेकिन ये जो लोग लिख रहे हैं उनका तो एक नाटक चल रहा है। क्या हमारे यहाँ आग नहीं लगती? क्या हमारे यहाँ इमारतें सुरक्षित हैं? नहीं।

हम तो बस अपने देश की नीचता को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं।

Hitendra Singh Kushwah

Hitendra Singh Kushwah

ये तो बस एक आग है। लेकिन ये जो लोग लिख रहे हैं उनका तो एक नाटक चल रहा है। क्या हमारे यहाँ आग नहीं लगती? क्या हमारे यहाँ इमारतें सुरक्षित हैं? नहीं।

हम तो बस अपने देश की नीचता को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं।

Rohan singh

Rohan singh

मैंने अपने भाई को कुवैत भेजा था। उसने कहा - 'भाई, यहाँ तो हमें दो बार सोचना पड़ता है। एक बार काम के लिए, दूसरी बार जिंदगी के लिए।'

अब मैं उसकी बात समझ गया।

हमें ये समझना होगा कि विदेश में जाने वाले लोग बस एक आर्थिक उपकरण नहीं हैं। वो इंसान हैं।

हमें ये समझना होगा कि ये आग नहीं, ये एक सिस्टम की विफलता है।

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