अमेरिकी अर्थव्यवस्था: अब क्या चल रहा है?
अमेरिका का बाजार हमेशा से विश्व की नज़र में रहा है। चाहे स्टॉक मार्केट हो या रोज़मर्रा की महंगाई, लोग यहाँ की आर्थिक चालों को करीब से देखते हैं। तो आज हम बात करेंगे कि इस वर्ष अमेरिकी अर्थव्यवस्था में कौन‑से बड़े बदलाव देखे जा रहे हैं और उनका असर हमारे लिए क्या हो सकता है।
मुख्य संकेतक और चल रहे बदलाव
सबसे पहले बात करते हैं उन आँकड़ों की जो सच्ची तस्वीर दिखाते हैं। ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट (GDP) की वार्षिक वृद्धि दर अभी 2‑2.5 % के आसपास कायम है, जो पिछले साल की तेज़ी से थोडा धीमा हो गया है। इस slowdown के पीछे मुख्य कारणों में चीन‑अमेरिका टेंशन, सप्लाई चेन में गड़बड़ी और एन्क्लाइटनमेंट के बाद ऊर्जा कीमतों में उछाल शामिल हैं।
अमेरिकी श्रम बाजार अभी भी मजबूती दिखा रहा है। बेरोजगारी दर 3.5 % के नीचे बनी हुई है, लेकिन नौकरी की गुणवत्ता में बदलाव आ रहा है। टेक सेक्टर में हायरिंग धीमी हुई है, जबकि हेल्थ‑केयर और रिन्युएबल एनर्जी में नई नौकरियां बन रही हैं। इससे अक्सर यह कहा जाता है कि ‘काम की प्रकृति बदल रही है, लेकिन रोजगार नहीं खो रहा है’।
इनफ्लेशन का मुद्दा भी बहुत हॉट है। फेडरल रिज़र्व ने पिछले साल कई बार इंटरेस्ट रेट बढ़ाया, जिसका मकसद महँगाई को कंट्रोल करना था। अब कीमतें थोड़ा स्थिर हो रही हैं, लेकिन अभी भी 4‑5 % के आसपास हैं, जो कई उभरते बाजारों से ज्यादा है। इसका मतलब है कि आम आदमी का ख़र्चा अभी भी थोड़ा बढ़ा हुआ है।
भविष्य की राह: क्या उम्मीद रख सकते हैं?
अब सवाल ये है कि अगले सालों में क्या हो सकता है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर फेड आगे भी रेट बढ़ाएगा तो क्रेडिट खर्च पर असर पड़ेगा, जिससे छोटे व्यवसायों और स्टार्ट‑अप्स को फंडिंग में कठिनाई हो सकती है। दूसरी ओर, अगर वे रेट को स्थिर रखेंगे तो निवेशक शेयर मार्केट में फिर से भरोसा जमाएंगे।
टेक्नोलॉजी और क्लीन एनर्जी के निवेश लगातार बढ़ रहे हैं। सरकार ने ‘इंडस्ट्री 4.0’ और ‘ग्रीन न्यू डील’ जैसी योजनाओं से नवीकरणीय ऊर्जा को प्रमोट किया है। अगर ये प्लान सही से लागू होते हैं तो अगले 5‑10 साल में अमेरिकी ऊर्जा खपत में ग्रेट बदलाव देख सकते हैं, जिससे इम्पोर्ट‑डिपेंडेंसी कम होगी और रोजगार में नई संभावनाएँ बढ़ेंगी।
एक बात और जो ध्यान में रखनी चाहिए, वो है अमेरिकी डॉलर का ग्लोबल रिज़र्व करंसी के तौर पर टिके रहना। अगर भारत और चीन जैसे बड़े देश अपने रिज़र्व में USD घटाकर युरो या डिजिटल करंसीज़ को जोड़ते हैं, तो डॉलर की वैल्यू में दबाव आ सकता है। इससे इम्पोर्टेड सामान की कीमतें और महँगाई पर असर पड़ेगा।
सारांश में, अमेरिकी अर्थव्यवस्था अभी एक हलचल भरे मोड़ पर है। इंटरेस्ट रेट, इनफ्लेशन, टेक्नोलॉजी और ऊर्जा नीति मिलकर भविष्य की दिशा तय करेंगे। अगर आप निवेश या व्यापार की सोच रहे हैं, तो इन बिंदुओं को ध्यान से देखना फायदेमंद रहेगा। इस तरह आप बदलते परिदृश्य में भी सही कदम उठा सकते हैं।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने अपनी जुलाई नीति बैठक में प्रमुख ब्याज दर को 5.25% से 5.5% के बीच बनाए रखा। फेड चेयर जेरोम पॉवेल ने संकेत दिया कि सितंबर में दर कटौती संभव है। इस निर्णय ने बाजार में उत्साह बढ़ाया और नैस्डेक में 2.6% की वृद्धि दर्ज की गई। मुद्रास्फीति में गिरावट और श्रम बाजार के कमजोर होने से दर कटौती की संभावना बढ़ गई है।