डीवाई चंद्रचूड़ का उदय और पतन: भारतीय न्यायपालिका में उदार विचारधारा पर संकट

नवंबर 9 Roy Iryan 5 टिप्पणि

डीवाई चंद्रचूड़: उदार विचारधारा के प्रतीक से विवाद के केंद्र तक

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ का नाम पिछले कुछ वर्षों में शब्दशः न्याय और उदार विचारधारा के स्तम्भ के रूप में उभरा है। उनकी न्यायिक यात्रा कईं महत्वपूर्ण फैसलों से भरी हुई है। हालांकि यह यात्रा हमेशा सरल नहीं रही। हाल ही में, वह आलोचना के उद्दीपन में आए हैं, खासकर इंदिरा जयसिंह और द कारवां जैसी उदार आवाज़ों द्वारा।

आलोचना का मुख्य तर्क यह है कि चंद्रचूड़ ने महत्वपूर्ण मामलों को ऐसी बेंच को सौंपा जिसने भाजपा सरकार के पक्ष में फैसले दिए। इन आलोचनाओं में CAA और अनुच्छेद 370 जैसे मामलों की चर्चा विशेष रूप से उठाई गई है। इंदिरा जयसिंह ने आरोप लगाया कि मुख्य न्यायाधीश के कार्यकाल में कुछ महत्वपूर्ण और विवादास्पद मामलों की बेंच के चयन में पक्षपात किया गया, जिससे न्याय के प्रति विश्वास में गिरावट आई।

इंदिरा जयसिंह और द कारवां की आलोचना

यह विवाद तब अधिक गहराया जब इंदिरा जयसिंह ने खुलेआम चंद्रचूड़ की न्यायिक निष्पक्षता पर संदेह व्यक्त किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कुछ फैसले सरकार के लिए थोड़े से अधिक उदार हैं जबकि कईं अन्य मामलों में उनकी प्रक्रिया प्रक्रियात्मक रूप से सही नज़र नहीं आती। उन्होंने कईं अभिलेखीय तथ्यों पर भी ध्यान आकर्षित किया जो कथित तौर पर चंद्रचूड़ के निर्णयों में संघर्ष का सुझाव देते रहे हैं।

द कारवां पत्रिका ने भी इस विवाद को हवा दी। उनके लेखों ने न्यायिक पद्धति की गहराई से जांच की और यह आरोप लगाए कि चंद्रचूड़ की उदार छवि मात्र सतही है। इसमें उन्होंने खासकर नागरिकता संशोधन कानून और अनुच्छेद 370 के विषय में विचार जताए। उनकी रिपोर्टस ने इन फैसलों में न्याय और पक्षपात के तत्व खोजने की कोशिश की।

चंद्रचूड़ की प्रतिक्रिया

इस आलोचना और आरोपों के बीच, चंद्रचूड़ ने अपने निर्णयों का पुरजोर बचाव किया है। उन्होंने आरोपों के विरुद्ध एक सशक्त प्रतिउत्तर देते हुए कहा कि ये सभी टिपणियाँ न्यायिक निर्णय के चयनात्मक आलोचना का हिस्सा हैं। उनका तर्क रहा कि विभिन्न परिस्थितियों में दिए गए निर्णय व्यापक न्यायिक प्रक्रिया और सत्य के आधार पर आधारित थे।

उनका मानना था कि उदारवादियों की कड़ी आलोचना ने एक बड़ा संकट खड़ा कर दिया है। इसके जवाब में उन्होंने उदार आंदोलन के ही कुछ विरोधाभासों की ओर इशारा किया जिसने इस पूरे विवाद की जटिलता बढ़ा दी है। उनके अनुसार, मुद्दा निर्णायक पद की गरिमा और नैतिकता की परीक्षा बन गया है।

मुख्य मुद्देविवरण
CAAराज्य और नागरिकता के प्रति दृष्टिकोण
अनुच्छेद 370कश्मीर के विशेष दर्जे का मुद्दा

कानूनी विशेषज्ञों की राय

इस पूरे विवाद में विभिन्न कानूनी विशेषज्ञों और विश्लेषकों की राय बंटी हुई है। कुछ का मानना है कि चंद्रचूड़ का न्यायिक दृष्टिकोण काफी विस्तृत रहा है और इस प्रकार के निर्णय प्रशासनिक वास्तविकताओं का समायोजन है। उनका कहना है कि ये निर्णय भारत के संवैधानिक ढांचे में सुधार की दिशा में साहसिक कदम हैं।

वहीं दूसरी ओर, कुछ आलोचकों का कहना है कि इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आंच आई है। वे यह मानते हैं कि न्यायपालिका को स्वायत्तता तथा निष्पक्षता में सुधार लाना आवश्यक है। उनके अनुसार, यह विवाद दर्शाता है कि भारतीय न्यायपालिका को राजनीतिक और सामाजिक संतुलन बनाकर काम करने की आवश्यकता है।

भारतीय न्यायपालिका और उदार आंदोलन का भविष्य

डीवाई चंद्रचूड़ के इर्दगिर्द पैदा हुआ विवाद भारतीय न्यायपालिका के लिए कईं सबक लेकर आया है। यह एक अवसर है जब न्यायपालिका अपनी प्रक्रियाओं और प्राथमिकताओं को पूर्णता की दिशा में पुनः माप सके। इससे न केवल न्यायपालिका की प्रक्रिया में सुधार होगा बल्कि जनता के बीच उनकी विश्वसनीयता भी बढ़ेगी।

उदार आंदोलन के लिए भी यह समय स्वीकृति और बदलाव का है। नई स्थिति और राजनीतिक परिदृश्य के अनुसार खुद को नए सिरे से स्थापित करने की आवश्यकता है। इससे भारत का लोकतंत्र मजबूती पा सकेगा और विविध आवाज़ें अपनी सार्थकता से समृद्ध होंगी।

Roy Iryan

Roy Iryan (लेखक )

मैं एक अनुभवी पत्रकार हूं जो रोज़मर्रा के समाचारों पर लेखन करता हूं। मेरे लेख भारतीय दैनिक समाचारों पर गहन विश्लेषण प्रदान करते हैं। मैंने विभिन्न समाचार पत्र और ऑनलाइन प्लेटफार्म के लिए काम किया है। मेरा उद्देश्य पाठकों को सही और सटीक जानकारी प्रदान करना है।

Partha Roy

Partha Roy

ye sab bhai log bas ek hi baat ke aaspaas ghoom rahe hain... Chandrachud ne jo kia hai wo constitution ke spirit ke hisaab se hai... CAA aur 370 ke cases mein jo decisions aaye hain unmein koi bias nahi hai... bas log apne apne political views ko judicial review ke saath mix kar rahe hain... yeh toh normal hai jab tak judiciary ka koi decision political party ke saath match nahi karta... tabhi sab log uth jaate hain... lekin agar BJP ke saath match karta hai toh usko bias bol dete hain... double standards ka khel hai ye...

Kamlesh Dhakad

Kamlesh Dhakad

thoda soch ke bolo na yaar... Chandrachud ji ne jo kuch kiya hai wo sirf ek person ki decision nahi hai... ek bench ka decision hota hai... aur jaise hi koi major case aata hai toh sab kuch public mein leak ho jata hai... log ek line padh ke judgment ko judge karne lagte hain... kya tumne kabhi full judgment padha hai? nahi na? phir kaise bol rahe ho bias hai?... ye sab bas emotional reactions hain... judiciary ko time dena padega...

ADI Homes

ADI Homes

maine ek baar Chandrachud ji ka ek judgment padha tha... usmein unhone ek tribal ladki ki case mein ekdum simple language mein likha tha ki 'aapki aawaz suni gayi'... yeh koi politician ki baat nahi hai... yeh ek judge ki baat hai... aur phir koi kah raha hai ki ye sab surface level hai?... bhai yeh toh logon ki expectations hi badal gayi hain... hum sabko ab sab kuch instant chai ke tarah chahiye... lekin justice toh slow cooker mein banta hai...

Hemant Kumar

Hemant Kumar

ye sab baatein acchi hain... lekin ek point jo sab bhool rahe hain... judiciary ka kaam sirf political correctness nahi hota... uska kaam hai ki law ko interpret kare... aur agar koi law constitution ke khilaf hai toh usko strike kar de... CAA aur 370 ke cases mein jo decisions aaye hain... unmein koi legal flaw nahi hai... agar koi kah raha hai ki ye 'too liberal' ya 'too conservative' hai... toh uska matlab hai ki usko law ki samajh nahi hai... yeh sab emotional responses hain... law ki baat karte waqt logic chahiye...

NEEL Saraf

NEEL Saraf

yeh sab toh bas noise hai... ek judge ka kaam sirf ek case sunna aur uska faisla dena hai... point yeh hai ki log ab har decision ko political sign language mein samajhne lag gaye hain...

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