भारतीय ध्वजवाहक – क्या है उनका काम और क्यों होते हैं खास

ध्वजवाहक सिर्फ झंडा ले जाने वाला नहीं, बल्कि वो व्यक्ति है जो राष्ट्र की शान को सम्मानित रूप में पेश करता है। चाहे खेल मैच हो या राष्ट्रीय समारोह, ध्वजवाहक का कर्तव्य हमेशा विशेष होता है। इसलिए इस टैग पेज में हम बताएँगे कि ध्वजवाहक कैसे चुने जाते हैं और उनके पीछे क्या कहानी है।

ध्वजवाहक का इतिहास

स्वतंत्रता के बाद पहली बार 1947 में भारतीय ध्वज को आधिकारिक तौर पर पहचाना गया। शुरुआती दिनों में ध्वज को प्रमुख सरकारी इमारतों और स्कूलों में प्रदर्शन किया जाता था, लेकिन ध्वजवाहक की भूमिका धीरे‑धीरे विकसित हुई। 1950 के दशक में राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में प्रमुख एथलीट को ध्वजवाहक बनाना शुरू हुआ। इस tradition से आज तक कई खेल सितारे, सैनिक और समर्पित नागरिक ध्वज को ऊँचा ले जा रहे हैं।

आज के प्रमुख ध्वजवाहक

अभी की सबसे चमकदार ध्वजवाहक में कई नाम शामिल हैं। जैसे 2023 में भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली ने एशिया कप का ध्वज लेकर भारत का गौरव बढ़ाया। उसी तरह 2024 के Commonwealth Games में भारत के टॉप एथलीट तेज़सिन हुसैन ने ध्वज को बाहर ले जाया। इन चयन में बढ़ती पारदर्शिता और खिलाड़ियों की उपलब्धियों को ध्यान में रखा जाता है।

ध्वजवाहक बनना सिर्फ सम्मान नहीं, बल्कि एक बड़ी ज़िम्मेदारी भी है। उन्हें समारोह में झंडे की शुद्धता, सही ढंग से फड़फड़ाने और राष्ट्रीय भावनाओं को सही तरीके से पेश करना होता है। इसलिए चयन प्रक्रिया में अक्सर तीन चरण होते हैं – योग्यता, अनुशासन और सार्वजनिक छवि।

ध्वजवाहक की भूमिका को समझने के लिये कुछ आसान नियम याद रखिए: झंडे को हमेशा सफ़ेद पट्टी (लाल, सफ़ेद, हरे) के सही क्रम में लपेटें, ध्वज को कभी जमीन पर नहीं रखना चाहिए और ध्वज को डुबाने या फेंकने जैसी कोई बात नहीं। ये छोटे‑छोटे नियम हमारे राष्ट्रीय सम्मान को बनाए रखते हैं।

अगर आप भी ध्वजवाहक बनने की इच्छा रखते हैं, तो सबसे पहले अपने क्षेत्र में खेल या सेवा में उत्कृष्टता दिखानी होगी। कई बार स्कूल और कॉलेज में ध्वजवाहक के लिए फिजिकल फिटनेस टेस्ट भी होते हैं। तो फिटनेस, अनुशासन और राष्ट्रीय भावना पर काम करें, फिर मौका खुद ब खुद आएगा।

ध्वजवाहक बनने के बाद कई अवसर भी मिलते हैं – राष्ट्रीय समारोह में भाग लेना, स्कूल में प्रेरक व्याख्यान देना और कभी‑कभी अंतर्राष्ट्रीय इवेंट में भारत का प्रतिनिधित्व करना। यह सम्मान न सिर्फ व्यक्तिगत पहचान बढ़ाता है, बल्कि पूरे समाज में प्रेरणा का स्रोत बनता है।

संक्षेप में, भारतीय ध्वजवाहक का काम सिर्फ झंडा ले जाना नहीं, बल्कि वह देशभक्ति, अनुशासन और गौरव का प्रतीक है। उनका इतिहास, चयन प्रक्रिया और कर्तव्य सभी हमें यह याद दिलाते हैं कि हमारा झंडा हमें जोड़ता है और हमें बेहतर बनाकर आगे बढ़ाता है।

पेरिस ओलंपिक 2024 समापन समारोह में भारत के ध्वजवाहक से मिलिए

अगस्त 10 Roy Iryan 0 टिप्पणि

भारतीय ओलंपिक संघ ने शुक्रवार को घोषणा की कि पेरिस 2024 ओलंपिक खेलों के समापन समारोह में सेवानिवृत्त हो रहे हॉकी गोलकीपर पीआर श्रीजेश और निशानेबाज मनु भाकर संयुक्त ध्वजवाहक होंगे। श्रीजेश ने भारतीय पुरुष हॉकी टीम को कांस्य पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी और भाकर ने एकल ओलंपिक खेलों में कई पदक जीते थे। समापन समारोह 11 अगस्त, 2024 को होगा।