ईद-उल-अज़हा क्या है? आसान शब्दों में समझें

ईद-उल-अज़हा हर साल इस्लामी कैलेंडर के दसवें महीने ज़ु हल हिज़्ज़ा में मनाया जाता है। इसे ‘बलिदान की ईद’ भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन लोग अपनी क़ुरआनी कथा के अनुसार प्राणियों की कुर्बानी अदा करते हैं। इस त्यौहार की शुरुआत हज यात्रा के साथ होती है, लेकिन आम लोग भी इस दिन को बड़े उत्साह से मनाते हैं।

ईद की तैयारी: घर और दिल दोनों को सजाएँ

ईद से पहले सबसे पहले घर की सफ़ाई, नई कपड़े खरीदना और निकाह़ (नया खाना बनाने की तैयारी) होता है। कई परिवारों में ईद‑उल‑अज़हा के दिन सुबह की नमाज़ से पहले ज़कोत (खुदा को दी जाने वाली दान‑राशी) की गणना की जाती है। बाद में, यदि आप भेड़, बकरी या गाय का बलिदान करने की योजना बना रहे हैं, तो स्थानीय सामुदायिक केंद्र या माचिस की दुकान से संपर्क करें। भेड़ चुनते समय, स्वास्थ्य और उम्र दोनों का ध्यान रखें; आमतौर पर दो साल से कम उम्र की नरभेड़ें प्राथमिकता रखी जाती हैं।

बलिदान की सही विधि और उसके बाद की परम्पराएँ

जब भेड़ को कुर्बानी के लिए तैयार किया जाता है, तो यह ज़रूरी है कि प्रक्रिया मानवीय हो। पहले जानवर को शांत करने के लिए हल्का पानी दिया जाता है, फिर शांति से उसकी गर्दन काटी जाती है। इस क्रिया के बाद खून को साफ़ पानी से धोया जाता है और फिर मांस को तीन हिस्सों में बाँटा जाता है – एक हिस्सा खुदा के लिये, एक गरीबों के लिये और एक अपने परिवार के लिये। इस बाँटने की परम्परा क़ुरआन में स्पष्ट है और समुदाय में भाईचारा बढ़ाती है।

ईद के दिन भोजन के साथ-साथ मिठाइयाँ जैसे सेवई, फिरनी और हलवा भी तैयार होते हैं। बच्चें और बड़ों को नई‑नई कपड़े पहनाकर, मिल‑जुलकर ईद की नमाज़ अदा की जाती है। नमाज़ के बाद, लोग एक‑दूसरे को ‘अरदु टईब’ (इसलाम) कहते हैं और मिठाइयाँ, फल और नमक वाले स्नैक्स बाँटते हैं। यह समय है जब आप अपने पड़ोसियों और जरूरतमंदों को याद करते हैं, इसलिए ज़कोत और भेड़ के मांस का एक हिस्सा दान देना न भूलें।

ईद‑उल‑अज़हा के दौरान सामाजिक मीडिया पर भी कई लोग अपने सन्देश और तस्वीरें साझा करते हैं, पर असली खुशी तो घर‑परिवार में मिल‑जुल कर बिताए पलों में होती है। कुछ लोग इस अवसर पर दावतें आयोजित करते हैं, जहाँ सभी रिश्तेदार एक साथ बैठकर ख़ुशियाँ मानते हैं। यह दिखाता है कि इस त्यौहार का असली मकसद सिर्फ़ बलिदान ही नहीं, बल्कि इंसानियत और एक‑दूसरे के प्रति प्रेम भी है।

सारांश में, ईद‑उल‑अज़हा हमें आत्म‑निरीक्षण, दान‑शक्ति और एकता की सीख देती है। यदि आप इस ईद को सही ढंग से मनाना चाहते हैं, तो पहले ज़कोत की योजना बनाएं, पशु के स्वास्थ्य का ध्यान रखें और कुर्बानी के बाद मांस को समान रूप से विभाजित करें। इस तरह आप न सिर्फ़ धार्मिक कर्तव्य निभाते हैं, बल्कि समाज में भी सकारात्मक बदलाव लाते हैं।

ईद-उल-अज़हा 2024: ईद मुबारक इमेजेस, कोट्स, शुभकामनाएं, संदेश, कार्ड्स और ग्रीटिंग्स

जून 16 Roy Iryan 0 टिप्पणि

ईद-उल-अज़हा जिसे कुर्बानी का त्योहार भी कहा जाता है, इस्लाम में एक महत्वपूर्ण धार्मिक दिन है जो हज यात्रा के समापन पर मनाया जाता है। यह अवसर प्रार्थना, दावत, और उपहारों के आदान-प्रदान से भरा होता है। यह लेख आपको ईद मुबारक संदेश, कोट्स, और ग्रीटिंग्स साझा करने के लिए अनेक सुझाव देता है।