रतन टाटा: बिजनेस दिग्गज का सफर और प्रेरणा

जब नाम सुनते ही कई लोगों के दिमाग में ‘इंडिया का सबसे बड़ा उद्योगपति’ आती है, तो वो है रतन टाटा। उनका सफर एक साधारण नौकरी से लेकर समूह के चेयरमन तक, बहुत ही दिलचस्प है और सीखने लायक भी।

रतन टाटा का शुरुआती जीवन और शिक्षा

रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को मुंबई में हुआ। बचपन में उन्हें बहुत थोड़ा झरना-धार दिखा, इसलिए वे अक्सर पढ़ाई में डुबकी लगाते थे। उन्होंने कॉनकॉर्ड, मुंबई से स्कूल की पढ़ाई की और फिर इंग्लैंड की दाॅरटन स्कूल में हाई स्कूल पूरा किया। बाद में, उन्हें हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से बेचा गया, जहाँ उन्होंने प्रबंधन की बुनियाद सीखी। यह शिक्षा ही बाद में उनके निर्णय‑निर्धारण में मददगार साबित हुई।

टाटा ग्रुप के साथ करियर की शुरुआत

रतन टाटा ने 1962 में टाटा समूह में काम करना शुरू किया। शुरुआती सालों में उन्हें एक जिम में लिफ्ट करने वाले कर्मचारी की तरह कई छोटे‑छोटे काम करने पड़े। लेकिन उनकी मेहनत और नयी सोच ने उन्हें जल्दी ही ऊंची पदों पर पहुंचा दिया। 1991 में, जब भारतीय अर्थव्यवस्था में बड़े बदलाव आए, तब टाटा ग्रुप को एक मजबूत लीडर की जरूरत थी। रतन टाटा ने इस मोड़ पर समूह के चेयरमैन बनकर इसे संभाला। उन्होंने कई विदेशी कंपनियों को खरीदा, जैसे टाटा मोटर ने टायटन और जैन्टिंग को, जिससे भारत में कार उद्योग का मानचित्र बदल गया।

उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक था टाटा नैनो के लॉन्च, जो ‘सस्ती कार’ बनाने की पहल थी। चाहे प्रोजेक्ट के सफ़र में कई बाधाएँ आईं, लेकिन उनके इरादे ने हमेशा नई दिशा दिखायी। उन्होंने टाटा स्काई में ‘फाइनेंस’ और ‘सलोन अकादमी’ जैसे कई पहलें भी शुरू कीं, जिससे रोजगार और शिक्षा दोनों को बढ़ावा मिला।

रतन टाटा सिर्फ़ व्यापार नहीं, बल्कि समाज सेवा में भी सक्रिय रहे। टाटा ट्रस्ट के माध्यम से उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास पर कई बड़े प्रोजेक्ट चलाए। उनका मानना था कि ‘बिज़नेस का असली मकसद समाज को बेहतर बनाना है’। यही कारण है कि उनका नाम अक्सर ‘सस्टेनेबिलिटी’ और ‘कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी’ के साथ जुड़ा रहता है।

आज रतन टाटा सेवानिवृत्त हो चुके हैं, पर उनका असर टाटा ग्रुप में आज भी साफ़ दिखता है। नए CEO और बोर्ड में उनके सिद्धांतों को लागू करने की कोशिश लगातार चलती रहती है। उनका एक प्रसिद्ध कोट है – “खुशी की परवाह कर के काम करो, तो मुसीबतें खुद ही कम हो जाएँगी।’” यह बात आज के युवा उद्यमियों के लिए बहुत प्रेरणादायक है।

अगर आप भी अपना करियर या बिजनेस शुरू करना चाहते हैं, तो रतन टाटा की कहानी से कुछ खास सीखें: लक्ष्य स्पष्ट रखें, टीम को भरोसा दें, और हमेशा समाज को कुछ वापस दें। यही तरीका है असली सफलता का, जो समय के साथ नहीं बदलता।

रतन टाटा की वसीयत में शामिल शंतनु नायडू, जानिए उनके उल्लेख का महत्व

अक्तूबर 26 Roy Iryan 0 टिप्पणि

शंतनु नायडू, जो रतन टाटा के लंबे समय से सहयोगी और 'द गुडफेलोज' नामक बुजुर्ग देखभाल स्टार्टअप के संस्थापक हैं, को टाटा की ₹10,000 करोड़ रुपए की वसीयत में शामिल किया गया है। रतन टाटा ने अपने उद्यम में नायडू की दृष्टि पर भरोसा जताते हुए स्टार्टअप में अपनी हिस्सेदारी छोड़ दी है और उनकी विदेशी शिक्षा का खर्च भी उठाया है। यह टाटा के लिए अपने मेंटी के भविष्य के प्रति समर्पण को दर्शाता है।