जब US Department of State ने पहली आधी 2025‑ fiscal year में भारतीय छात्रों को जारी किए गए F‑1 वीजा की संख्या 14,700 बताई, तो यह आंकड़ा 2024 की समान अवधि में लगभग 26,000 के मुकाबले 44% गिरावट दर्शा रहा था। इस गिरावट का असर न केवल छात्रों के शैक्षणिक योजनाओं पर, बल्कि अमेरिकी विश्वविद्यालयों की राजस्व धारा पर भी गहरा पड़ रहा है। डेटा के अनुसार, वीजा प्रसंस्करण में देरी, सामाजिक‑मीडिया स्क्रीनिंग का विस्तार, और मई‑जून 2025 में भारत में कंसुलेट इंटरव्यू का निलंबन मुख्य कारण बनकर उभरे।
वर्तमान गिरावट का आँकड़ा और उसका विस्तृत परिदृश्य
US International Trade Administration के आंकड़ों के अनुसार, अगस्त 2024 में भारत से आए छात्रों की संख्या 74,825 थी, जबकि अगस्त 2025 में यह घटकर 41,540 रह गई। जुलाई में भी इसी तरह की गिरावट देखी गई – 24,298 से घटकर 13,027। कुल मिलाकर, अंतरराष्ट्रीय छात्रों की आगमन संख्या में 19% की साल‑पर‑साल गिरावट दर्ज हुई, जो चार साल में सबसे कम अगस्त प्रवेश को दर्शाती है।
गिरावट के प्रमुख कारण
पहला तो कारण है सामाजिक‑मीडिया स्क्रीनिंग का सख्त होना। कंसुलर अधिकारियों ने अब आवेदकों के ऑनलाइन प्रोफाइल का विस्तृत विश्लेषण करना शुरू कर दिया है, जिससे कई योग्य छात्रों को अतिरिक्त प्रश्नों का सामना करना पड़ रहा है। दूसरा कारण है मई 27 से जून 18, 2025 तक भारत में अमेरिकी कांसुलेट द्वारा वीजा इंटरव्यू का निलंबन – यह वही समय था जब फॉल सैमेस्टर के लिये आवेदन की लहर आ रही थी।
तीसरा, Trump administration द्वारा लागू नीतियों ने भी माहौल को और कठिन बना दिया। सितंबर 19, 2025 को H‑1B वीजा पर $100,000 की अतिरिक्त फीस की घोषणा ने कई छात्रों को भविष्य में रोजगार संभावनाओं को लेकर अनिश्चित बना दिया। इस शुल्क का असर सीधे पोस्ट‑ग्रेजुएशन विकल्पों पर पड़ता है, क्योंकि कई भारतीय छात्र इस विकल्प को ही अमेरिकी शिक्षा का मुख्य आकर्षण मानते हैं।
अंत में, सेक्शन 214(b) के तहत वीजा रेजेक्शन रेट में उछाल देखी गई – अधिकारियों का मानना है कि आवेदक को अपने गृहदेश में वापस लौटने का भरोसा देना जरूरी है। वर्तमान में, साफ़ प्रोफ़ाइल वाले छात्रों के लिए भी रेजेक्शन दर 50% तक पहुँच गई है, जो पहले कभी नहीं देखी गई थी।
विश्वविद्यालयों पर प्रत्यक्ष असर
अमेरिकी संस्थानों ने इस गिरावट को पहले ही महसूस किया है। Saint Louis University ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय छात्र 45% कम हो गए, जबकि University of Cincinnati में यह प्रतिशत 25% तक गिरा। विशेष रूप से STEM शाखाओं में University at Buffalo ने 1,000 से अधिक ग्रेजुएट छात्रों को खोया, जो उनके शोध फंडिंग और लैब कार्य में बड़ा अंतर पैदा कर रहा है।
एक विश्वविद्यालय प्रशासक ने कहा, "हमारी सालाना ट्यूशन आय में लगभग 12% की गिरावट होगी, और यह सिर्फ एक विश्वविद्यालय तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र में महसूस हो रही है।"
वैश्विक छात्र प्रवाह में नई दिशा
भारत से छात्र अब केवल अमेरिकी विश्वविद्यालयों तक सीमित नहीं रहेंगे। Institute for Progress और NAFSA के सर्वे के अनुसार, 57% छात्रों ने बताया कि OPT कार्यक्रम के अंत में वे अमेरिका में रहने की योजना नहीं बनाते। परिणामस्वरूप, जर्मनी, यूएई, न्यूज़ीलैंड और आयरलैंड जैसे स्थायी विकल्पों की ओर प्रवृत्ति बढ़ रही है।
एक भारतीय छात्र, जिसने अभी-अभी अपने विकल्प बदल लिए, ने कहा, "अमेरिका के बारे में अनिश्चितता के कारण मैंने जर्मनी के मास्टर प्रोग्राम को चुना, जहाँ तकनीकी शिक्षा और रोजगार के अवसर स्पष्ट दिखते हैं।"
भविष्य की संभावनाएँ और संभावित नीतिगत बदलाव
अगर मौजूदा गिरावट जारी रही, तो कुछ विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2026 तक भारतीय वीजा आवेदनों में 70% तक की गिरावट हो सकती है। यह न केवल अमेरिकी विश्वविद्यालयों के वित्तीय स्वास्थ्य को प्रभावित करेगा, बल्कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में कुशल कार्यबल की कमी भी उत्पन्न कर सकता है।
समाधान की दिशा में, कुछ नीति निर्माताओं ने सुझाव दिया है कि वीजा इंटरव्यू प्रक्रिया को डिजिटाइज़ किया जाए, और सामाजिक‑मीडिया स्क्रीनिंग के मानदंडों को पारदर्शी बनाया जाए। इसके अलावा, H‑1B वीजा शुल्क को घटाकर या पुनः समीक्षा करके छात्रों को आकर्षित किया जा सकता है।
इतिहास में इसी तरह के उतार‑चढ़ाव
अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय छात्र प्रवाह में पिछले कुछ दशकों में दो‑तीन बार बड़े बदलाव देखे गए हैं। 2010 के बाद, बीते वर्षों में भी राजनीतिक नीतियों ने छात्र आवागमन को प्रभावित किया था, लेकिन आज की गिरावट की गति और स्केल पहले कभी नहीं देखी गई। इस कारण, विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक "टर्निंग पॉइंट" हो सकता है, जहाँ भारत के छात्रों का भविष्य चुनौतिपूर्ण हो सकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
क्या भारतीय छात्र अब भी अमेरिका में पढ़ाई करना चाहेंगे?
सम्भावना है कि कुछ शीर्ष संस्थानों में अभी भी आकर्षण रहेगा, पर कुल मिलाकर 2025‑2026 में छात्रों की रूचि कम होती दिख रही है, खासकर जब वैकल्पिक देशों में बेहतर रोजगार‑परिस्थितियाँ उपलब्ध हो रही हैं।
वर्तमान वीजा रेजेक्शन दर इतनी अधिक क्यों है?
संस्थागत सुरक्षा उपायों के तहत, कांसुलर अधिकारी अब आवेदकों के इरादे को साबित करने के लिए सख्त मानदंड लागू कर रहे हैं, और सामाजिक‑मीडिया प्रोफाइल का गहन विश्लेषण भी रेजेक्शन दर बढ़ा रहा है।
अमेरिका के विश्वविद्यालयों को इस गिरावट से कैसे बचना चाहिए?
डिजिटल वीजा साक्षात्कार, वित्तीय सहायता की नई योजनाएँ, और H‑1B वीजा प्रक्रिया में सुधार जैसे कदम संभावित समाधान हो सकते हैं। संस्थानों को वैकल्पिक राजस्व स्रोतों पर भी ध्यान देना होगा।
क्या अन्य देशों में भारतीय छात्रों की मांग बढ़ रही है?
हाँ, जर्मनी, यूएई, न्यूज़ीलैंड और आयरलैंड ने पिछले दो वर्षों में भारतीय प्रवासियों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है, मुख्यतः आसान वीजा प्रक्रिया और बेहतर पोस्ट‑स्टडी रोजगार के कारण।
क्या भारत‑अमेरिका शिक्षा समझौता इस स्थिति को बदल सकता है?
यदि दोनों देशों के बीच नई द्विपक्षीय शैक्षिक पहलें शुरू होती हैं, तो वीजा प्रक्रियाओं में स्निग्धता आ सकती है, लेकिन यह तभी संभव है जब अमेरिकी नीतियों में लचीलापन लाया जाए।
Umesh Nair
ये आंकड़े तो बिलकुल भी नहीं समझ आते, क्यूँ यूएस खुद अपनी वीज़ा नीति को इतना कठोर बना रहा है? ऐसा लग रहा है कि हमसे काउंटर‑इंडस्ट्रीज में हटा देना चाहते हैं, बस यूएस के साथ खेलते‑खेलते।
kishore varma
वास्तव में जानकारी बहुत ही इंटरेस्टिंग है! 🤔📊 इससे स्पष्ट है कि कई छात्रों को अब वैकल्पिक विकल्पों पर गौर करना पड़ेगा। ✈️💡
Kashish Narula
हम्म... मैं भी सोचती हूँ कि इस बहस में बहुत सारी बातें हो रही हैं, पर वास्तव में प्रत्येक छात्र को अपने लक्ष्य पर ध्यान देना चाहिए। इस डेटा से हमें सीख मिलती है, और हम सबको मिलकर समाधान निकालना है।
smaily PAtel
डेटा को देखते हुए कई प्रमुख बिंदु स्पष्ट होते हैं, पहला यह कि सामाजिक‑मीडिया स्क्रीनिंग की कड़ी प्रक्रिया ने वास्तव में आवेदन में देर कर दी है, जिससे कई योगी छात्रों को अतिरिक्त प्रश्नों का सामना करना पड़ रहा है; दूसरा, कंसुलेट इंटरव्यू का निलंबन, विशेषकर मई‑जून 2025 में, ने फॉल सैमेस्टर के आवेदन पर प्रभाव डाला है; तीसरा, H‑1B वीज़ा पर $100,000 की अतिरिक्त फीस ने छात्रों के आर्थिक बोझ को बढ़ा दिया है, जिससे पोस्ट‑ग्रैजुएट विकल्पों में अनिश्चितता उत्पन्न हुई है; चौथा, सेक्शन 214(b) के तहत रेजेक्शन दर में उछाल ने यह सिद्ध किया है कि कंसुलेट अधिक सख्त मानदंड अपनाएगा; पाँचवां, विश्वविद्यालयों की आय में लगभग 12% की गिरावट को देखते हुए, निरंतर फंडिंग की कमी स्पष्ट हो रही है, और इससे शोध कार्य पर भी प्रभाव पड़ रहा है; छठा, वैकल्पिक देशों जैसे जर्मनी, यूएई, न्यूज़ीलैंड और आयरलैंड में भारतीय छात्रों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है, यह दर्शाता है कि वैकल्पिक विकल्पों की ओर प्रवृत्ति बढ़ रही है; सातवां, भविष्य में यदि वीज़ा प्रक्रिया को डिजिटल बना दिया जाए, तो संभावित सुधार देखा जा सकता है; आठवां, सामाजिक‑मीडिया स्क्रीनिंग के मानदंड को पारदर्शी बनाकर, छात्रों के भरोसे को पुनः स्थापित किया जा सकता है; नौवां, नीति निर्माताओं द्वारा H‑1B वीज़ा शुल्क में पुनः समीक्षा की जाए तो छात्रों को आकर्षित किया जा सकता है; और अंत में, यदि द्विपक्षीय शैक्षिक समझौते को सुदृढ़ किया जाये तो अमेरिकी शिक्षा प्रणाली में भारतीय छात्रों के प्रवाह को स्थिर किया जा सकता है। इस विस्तृत विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि कई क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता है, और यह केवल सरकारी नीतियों से ही नहीं, बल्कि विश्वविद्यालयों की रणनीतिक योजना से भी सम्बंधित है।
Hemanth NM
यह एक बड़ी समस्या है।
rin amr
उच्च शिक्षा के अभिजात वर्ग के रूप में, हमें इस स्थिति को केवल आँकड़ों तक सीमित नहीं रखना चाहिए; यह नीति निर्माताओं के दृष्टिकोण में एक गंभीर विफलता को उजागर करता है, जो न केवल हमारे छात्रों की भविष्य की संभावनाओं को बाधित करता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचा रहा है।
shefali pace
सच में आशा की किरण है! इस चुनौती को हम मिलकर पार करेंगे, और भारत के छात्रों के लिए नए अवसर पैदा करेंगे। 🌟
sachin p
विचार करने वाली बात है कि इस गिरावट के बाद छात्रों का फोकस कहाँ स्थानांतरित हो रहा है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ वैकल्पिक शैक्षणिक विकल्प उपलब्ध हैं।
walaal sanjay
देशभक्तों को गर्व है! इस निरंतर गिरावट को देख कर हमें हमारी राष्ट्रीय नीति में सुधार की आवश्यकता बहुत स्पष्ट हो गई है!!!